“ओम नमो भगवते वासुदेवायः” श्री ऋग वेद: (1/13/3), (1/18/9) की तरह ही श्री ऋग वेद के सूक्त 1.106 के श्लोक #४ को गलत ढंग से अनुवाद करके झूठ फैलाया जा रहा है| इस मन्त्र में भी वही दावा किया गया है कि इसमें इस्लाम में पैगम्बर माने जाने वाले मोहम्मद की भविष्यवाणी की गई है| जैसा पहले ही बताया वेद कोई भविष्यवाणी का ग्रन्थ नहीं बल्कि ईश्वर के वाक्य और जिसमे सार्वभौमिक सत्य, देवताओं के लिए यज्ञ का आह्वाहन और मनुष्यों के आचरण के सम्बंधित तथ्य हैं किसी के आने और जाने की भविष्यवाणी नहीं| इस पुरे सूक्त का विवरण औरु अर्थ निम्न प्रकार से है, इन मन्त्रों और इनके अर्थ को पढने के बाद किसी को भी तुरंत मालूम चल जायेगा कि सत्य क्या है? श्री ऋग वेद 1.106 ऋषि: कुत्स, आंगिरस देवता: विश्वेदेवा, छंद: जगती, ७ त्रिष्टुप मंत्र इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमूतये मारुतं शर्धो अदितिंहवामहे | रथं न दुर्गाद वसवः सुदानवो विश्वस्मान नोंहसो निष पिपर्तन || 1|| त आदित्या आ गता सर्वतातये भूत देवा वर्त्रतूर्येषु शम्भुवः | रथं न दुर्गाद वसवः सुदानवो विश्वस्मान नोंहसो निष पिपर्तन... || 2|| अवन्तु नः पितरः सुप्रवाचना उत देवी देवपुत्रे रताव्र्धा | रथं न दुर्गाद वसवः सुदानवो विश्वस्मान नोंहसो निष पिपर्तन... ||3|| नराशंसं वाजिनं वाजयन्निह कषयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे | रथं न दुर्गाद वसवः सुदानवो विश्वस्मान नोंहसो निष पिपर्तन... || 4| बर्हस्पते सदमिन नः सुगं कर्धि शं योर्यत ते मनुर्हितं तदीमहे | रथं न दुर्गाद वसवः सुदानवो विश्वस्मान नोंहसो निष पिपर्तन... || 5| इन्द्रं कुत्सो वर्त्रहणं शचीपतिं काटे निबाळ्ह रषिरह्वदूतये | रथं न दुर्गाद वसवः सुदानवो विश्वस्मान नोंहसो निष पिपर्तन... || 6| देवैर्नो देव्यदितिर्नि पातु देवस्त्राता तरायतामप्रयुछन | तन नो मित्रो वरुणो माम् हन्ताम् अदितिः सिंधुः पृथिवी उत् द्यौः ||7|| अर्थ १. हम सभी अपने सरंक्षनार्थ इंद्र, मित्र, वरुण, अग्नि, मरुद्गण और अदिति का आह्वाहन करते हैं| हे सभी सभी सुख को देने वाले श्रेष्ठ ! सभी विपदाओं से हमे आप उसी प्रकार पार करें(विपदाओं से बचाएं) जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं|||२|| २. हे आदित्य गानों! आप सभी हमारे अभीष्ट यज्ञ में पधारें! असुर संहारक(अदिति गण) युद्धों में हमारे लिए सुखप्रद हो! हे सभी सुख को देने वाले श्रेष्ठ ! सभी विपदाओं से हमे आप उसी प्रकार पार करें(विपदाओं से बचाएं) जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं|||२|| ३. श्रेष्ठ प्रशंसनीय पितर और सत्य संवर्धक देवतायें हमारे संरक्षक हों(हमारी रक्षा करें) ! हे सभी सभी सुख को देने वाले श्रेष्ठ ! सभी विपदाओं से हमे आप उसी प्रकार पार करें(विपदाओं से बचाएं) जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं|||3|| ४. मनुष्यों के पूज्य(पूजनीय), बलवान और वीरों के शक्ति को संवर्धित करने वाले, वीरों के आराध्य पुषादेव की हम भक्तिपूर्वक आराधना (सुमिरन) करते हैं| हे सभी सभी सुख को देने वाले श्रेष्ठ ! सभी विपदाओं से हमे आप उसी प्रकार पार करें(विपदाओं से बचाएं) जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं|||4|| ५. हे वृहस्पति ! हमारे मार्ग सुगम करें (अर्थात जीवन को कठिनाईओं से मुक्त करें) | हम आपसे कल्याणकारी, श्रेष्ठ और सुखप्रदायक वरदान की कामना करते हैं(हम अपने लिए कल्याण, सुख और श्रेष्ठता का वरदान माँगते हैं)| हे सभी सभी सुख को देने वाले श्रेष्ठ ! सभी विपदाओं से हमे आप उसी प्रकार पार करें(विपदाओं से बचाएं) जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं|||5|| ६. पाप रूपी कुएं में गिरे जो कुत्स ऋषि ने शत्रु संहारक सामर्थ्यवान इन्द्र का अहवाहन किया| [और जिस प्रकार इन्द्र ने कुत्स ऋषि को उस पाप से निकला उसी प्रकार ] हे सभी सभी सुख को देने वाले श्रेष्ठ ! सभी विपदाओं से हमे आप उसी प्रकार पार करें(विपदाओं से बचाएं) जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं|||6|| ७ हे देवमाता अदिति! देव समूह के साथ हमे संरक्षित करें (हमारी रक्षा करें)| संरक्षण साधनों से युक्त अन्य देवगण बी तत्पर होकर हमारी रक्षा करें| हमारी प्रार्थना को मित्र वरु, अदिति, सिंधु, पृथ्वी और द्युलोक आदि देवगण स्वीकार करें||7|| व्याख्या ऊपर के मंत्र देवताओं की साधना के मंत्र हैं, मन्त्रों के द्वारा विभिन्न देवताओं का आह्वाहन किया गया है| यह भी ध्यान देना चाहिए के मंत्र #१ से मंत्र#६ तक जगती छंद है जिसमे दूसरी पंक्ति सबमे समान है| सातवें मंत्र में त्रिष्टुप छंद का प्रयोग है| इन मन्त्रों में देवताओं का बारी से अहवाहन करंते हुए, रक्षा, सुख, समृधि और वरदान की कामना की गयी है| देवताओं के आलावा मंत्र #३ में पितरों का भी अहवाहन किया गया है| पितरों के लिए भी पूजनीय विशेषण “अवन्तु” का प्रयोग है| इसी प्रकार विभिन्न देवताओं की महिमा का बखान विभिन्न विशेषणों /समासों से की गयी है| १.१०६.४ हिंदू विरोधी शक्तियों द्वारा इस सूक्त में मन्त्र #४ को गलत परिभाषित किया है: मंत्र#४ और उसका अर्थ यह है नराशंसं वाजिनं वाजयन्निह कषयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे | रथं न दुर्गाद वसवः सुदानवो विश्वस्मान नोंहसो निष पिपर्तन... || 4| अर्थ मनुष्यों के पूज्य(पूजनीय), बलवान और वीरों के शक्ति को संवर्धित करने वाले, वीरों के आराध्य पुषादेव की हम भक्तिपूर्वक आराधना (सुमिरन) करते हैं| हे सभी सभी सुख को देने वाले श्रेष्ठ ! सभी विपदाओं से हमे आप उसी प्रकार पार करें(विपदाओं से बचाएं) जैसे दुर्गम मार्ग से रथ को सावधानी पूर्वक निकालते हैं|||4|| पता नहीं कौन पागल होगा जिसको यह लगेगा कि इस मंत्र में किसी मोहम्मद, किसी इसा मसीह, मार्टिन लूथर या जार्ज बुश जैसे किसी ऐसे व्यक्ति की बात हो रही है? अगर ध्यान से देखें तो इस मंत्र में उस देवता का नाम भी लिखा हुआ है “पूषणं” अर्थात “पूषा देव”. इस शब्द के पहले एक नहीं चार चार विशेषण शब्दों का प्रयोग हुआ है पूषा देव के लिए, ये शब्द हैं नाराशंसं = मनुष्यों के पूज्य वाजिनं = बलवान, शक्तिवान वाजयन्निह = वीरों के बल को बढ़ाने वाले कषयद्वीरं = वीरों के आराध्य पूरी पंक्ति का अर्थ इस प्रकार यह होता है “मनुष्यों के पूज्य(पूजनीय), बलवान और वीरों के शक्ति को संवर्धित करने वाले, वीरों के आराध्य पुषादेव की हम भक्तिपूर्वक आराधना (सुमिरन) करते हैं|” ऊपर के मन्त्रों और अर्थ को पढने के बाद किसी को भी यह जानने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए की किस चीज़ की बात हो रही है, अगर कोई इन मन्त्रों के अर्थ को पूरा न भी समझ पाए, फिर भी इतना तो समझ ही सकता है कि इन मंत्रो में देवताओं की आराधना हो रही है| इन्द्र, वरुण, मित्र, आदित्यों, पूषा देव, वसुओं और दूसरे देवताओं की बात हो रही है किसी और की नहीं| झूठ को समाप्त करने का सबसे उत्तम साधन है सत्य को जानना और लोगों तक फैलाना. मेरा साधकों से आग्रह है कि इस सत्य को लोगों तक पहुंचाएं ताकि धूर्त, झूठे मक्कारों का मंशा को नष्ट किया जा सके| “श्री हरि ओम तत् सत्”