~ओम नमो भगवते वासुदेवायः~~ इस सूक्त के मन्त्र #९ का गलत अर्थ प्रचारित किया जा रहा है और यह झूठ फैलाया जा रहा है कि उसमे इस्लाम के पैगम्बर माने जाने वाले मोहम्मद के आने के भविष्यवाणी की गई है| यह इतना बड़ा झूठ है कि इसका कोई सिर पैर नहीं है, सबसे पहली बात तो यह कि वेद कोई भविष्यवाणी का ग्रन्थ नहीं है और इसमे किसी की भविष्यवाणी नहीं की गई है| दूसरी बात वेद में कहीं पर किसी दूसरे धर्म की किसी भी प्रकार से वर्णन नहीं है| वेद के सभी मन्त्रों में सृष्टि के सार्वभौमिक सत्य, यज्ञ और यज्ञ में देवताओ के लिए आहुतियों का वर्णन है किसी दूसरे पंथ के किसी व्यक्ति का नहीं| झूठ को उजागर करने के लिए सूक्त से सभी मंत्रो का अर्थ इस लेख में दिया जा रहा है| श्री ऋग्वेद 1.18 ऋषि: मेधातिथि काण्य देवता: (१-३) ब्रम्हणस्पति, ४ इन्द्र, ब्रम्हणस्पति, सोम ५. ब्रम्हणस्पति,दक्षिणा, ६-८ सदसस्पति ९ सदसस्पति सोमानं सवरणं कर्णुहि ब्रम्हणस्पते | कक्षीवन्तं य औशिजः || १|| यो रेवान यो अमीवहा वसुवित पुष्टिवर्धनः | स नः सिषक्तु यस्तुरः || २|| मा नः शंसो अररुषो धूर्तिः प्रण्ङ मर्त्यस्य | रक्षा णो ब्रम्हणस्पते || ३|| स घा वीरो न रिष्यति यमिन्द्रो बरह्मणस्पतिः | सोमो हिनोति मर्त्यम || ४|| तवं तं ब्रम्हणस्पते सोम इन्द्रश्च मर्त्यम | दक्षिणा पात्वंहसः || ५|| सदसस पतिमद्भुतं परियमिन्द्रस्य काम्यम | सनिं मेधामयासिषम ||६|| यस्माद रते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन | स धीनां योगमिन्वति ||७|| आद रध्नोति हविष्क्र्तिं पराञ्चं कर्णोत्यध्वरम |होत्रा देवेषु गछति || ८|| नराशंसं सुध्र्ष्टममपश्यं सप्रथस्तमम | दिवो नसद्ममखसम ||९|| अर्थ: १. हे सम्पूर्ण ज्ञान के अधिपति ब्रम्हणस्पते ! सोम का सेवन करने वाले यजमान को आप उशिज् के पुत्र कशिमान के समान श्रेष्ठ बनायें | २. रोगों का नाश करने वाले, समृद्धि प्रदान करने वाले, [भक्तों को] फल देने में तत्पर(शीग्र फल देने वाले) ऐश्वर्यवान्! ब्रम्हणस्पति देव [हम पर] कृपा करें ||३|| ३. हे ब्रम्हणस्पति देव ! यज्ञ न करने वाले(अर्थात वेद न मानने वाले), अनिस्टकारी, दुष्टों के अनिस्ट प्रभाव से हमारी रक्षा करें||३|| ४. जिस मनुष्य को इन्द्रदेव, ब्रम्हणस्पति [देव] और सोमदेव प्रेरित करते हैं, वह वीर कभी नष्ट नहीं होता ||४||(इंद्र से संगठन की, ब्रम्हणस्पति देव से श्रेष्ठ मार्गदर्शन की एवं सोम से पोषण की प्राप्ति होती है| इनसे युक्त मनुष्य क्षीण नहीं होता| ये तीनो देव यज्ञ में एकत्रित होते हैं| यज्ञ से प्रेरित मनुष्य दुखी नहीं होता बल्कि देवत्व प्राप्त करता है) ५. हे ब्रम्हणस्पते ! आप सोमदेव, इन्द्रदेव और दक्षिणा देवी के साथ मिलकर यज्ञादि अनुष्ठान करने वाले मनुष्य की पापों से रक्षा करें| ६. इन्द्रदेव के प्रिय मित्र ! अभीष्ट पदार्थों को देने में समर्थ, लोकों का मर्म समझने में सक्षम सदसस्पतिदेव(सत्प्रवृतियों के स्वामी) से हम अद्भुत मेधा(बुद्धि) प्राप्त करना चाहते हैं| ७. जिनकी कृपा के बिना ज्ञानी का भी यज्ञ पूर्ण नहीं होता, वे सदसस्पति[देव] हमारी बुधि को उत्तम प्रेरणाओं से युक्त करते हैं|(सदाशयता जिनमे नहीं, ऐसे विद्वानों द्वारा यज्ञीय प्रयोजनों की पूर्ति नहीं होती) ८. वे सदसस्पति [देव] हविष्यामन तैयार करने वाले साधकों तथा यज्ञ को प्रवृद्ध करते हैं औरु वे ही हमारी स्तुतियों को देवों तक पहुंचाते हैं| ९. द्युलोक के सदृश्य अतिदीप्तिमान्, तेजवान्, यशस्वी और [मनुष्यों के ] पूजनीय सदसस्पति [देव] का हमने साक्षात्कार किया है| विवरण यह सूक्त में भी विभिन्न देवताओं और देवी जैसे ब्रम्हणस्पति, इन्द्र, सोम, दक्षिणा देवी और सदसस्पति देव का यज्ञ में अहवाहन किया गया है| देवताओं की प्रशंसा में उनके गुणों के अनुसार वैसे पूजनीय शब्दों का प्रयोग किया गया है और उनसे उचित फल देने की बिनती की गयी है| ब्रम्हणस्पति देव के लिए निम्न पूजनीय विशेषणों का प्रयोग है(मंत्र #२): १. “रेवान”= समृधि (धन आदि) प्रदान करने वाले २. “अमीवहा”= रोगों का नाश करने वाले ३. “वसुवित”= शीघ्र फल देने वाले ४. “पुष्टिवर्धनः: शक्ति प्रदान करने वाले सदसस्पतिदेव के लिए निम्न विशेषणों का प्रयोग किया गया है: १.पतिमद्भुतं: लोकों का मर्म समझने वाले, लोगों के दुःख समझने वाले २. परियमिन्द्रस्य : इन्द्र के प्रिय ३. काम्यम : कामनाओं को पूरा करने वाले मन्त्र #९ में भी सदसस्पतिदेव के लिए और वैसे ही कुछ और विशेषणों का वर्णन है: ४. सुध्र्ष्टमम: अतिदीप्तिमान् ५. सप्रथस्तमम: पोषण करने ६. सद्ममखसम: पोषण करने वाले ७. नराशंस: मनुष्यों के पूजनीय ऊपर के सूक्त में ब्रम्हणस्पति देव और ,सदसस्पति देव की मूल रूप से आराधना की गयी है उनका यज्ञ में आह्वाहन किया गया है| इन देवताओं के लिए कई आदरणीय उपमाओं का वर्णन है | ऊपर के सूक्त देवताओं के अहवाहन हैं किसी भी अन्य व्यक्ति का किसी रूप से दूर दूर तक कोई वर्णन नहीं है| इस सूक्त के मन्त्र #६ से लेकर मंत्र #९ तक सदसस्पतिदेव के लिए करीब ७ उपमाओं के वर्णन है| उसके पहले मंत्र #१-३ तक ब्रम्हणस्पति के लिए भी करीब चार उपमाओं का वर्णन हैं इस प्रकार की उपमाएं वेद, पुराण और सभी हिंदू ग्रंथों में भली प्रकार से व्याप्त हैं| ऐसी उपमाएं सिर्फ हिंदू धर्म और सिर्फ संस्कृत में ही नहीं पाई जाती बल्कि सभी भाषाओँ और सभी प्रकार के ग्रंथों में पाई जाती हैं| कौन धर्म होगा जो अपने आराध्य को पूजनीय और आदरणीय शब्दों से नहीं पुकारेगा? बुद्ध धर्म के लोग गौतम बुध के लिए इन शब्दों के प्रयोग करते होंगे, ईसाई धर्म में इसा मसीह के लिए करते होंगे और इसी प्रकार इस्लाम में मुस्लिम अपने पैगम्बर के लिए या जिसे वे ईश्वर मानते हैं उसके लिए करते होंगे | लेकिन चूँकि कोई दो शब्द के अर्थ दो भाषाओँ में एक हो जाएँ और कोई आकर नए नए दावे शुरू कर दे तो यह शरारत पूर्ण हरकत ही कही जा सकती है| “श्री हरि ओम तत् सत्”
If somebody having authentic Veda content in English with him can post here. But yes, if somebody translate is also one of the ways.